Monday, September 19, 2011

तू मुसकुरा देती है ,तो दर्द भी मुसकुरा देता है

तू मुसकुरा देती है ,तो दर्द भी मुसकुरा देता है
तेरी यादो का कारवा,मुझे फिर जीने की सजा देता है

मै जो पुछता रहता हु तुम्हे मेरी ही तकदीर से कभी
छलकते आसुवोसे आखोका मैखाना सजा देता है

वो ग़ज़ल छेड़ देता हु, वो शेर पढ़ लेता हु मैफिलोमे
दिल-ए-तन्हाई में तेरा लिखा हर एक अल्फाज मजा देता है

शिकायते कई थी... कई बार ढूंडना भी चाहा मंजिल को
ठिकाना बदलना खेल तेरा ..वो है की झूठा हि पता देता है

फिर हसी लिए चहरे पे गुजरता हु उन भीड़ भरी गलियों से
"nileश" गम को तराशने वाला देख तुझे फिर वही दुवा देता है

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